"इज़राइल-ईरान युद्ध 2025: क्या यह तीसरे विश्व युद्ध की आहट है ?"
इज़राइल-ईरान युद्ध 2025: कारण, इतिहास और भविष्य की संभावनाएं
लेखक: Ankit | अपडेटेड: 19 जून 2025
प्रस्तावना
2025 में इज़राइल और ईरान के बीच छिड़ा युद्ध केवल दो देशों की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह मध्य पूर्व की राजनीति, वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा और परमाणु हथियारों के खतरे से जुड़ा एक गंभीर संकट है। इस लेख में हम जानेंगे कि यह युद्ध क्यों शुरू हुआ, इसके पीछे की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है, और अगर यह नहीं रुका तो दुनिया पर क्या असर पड़ सकता है।
युद्ध की शुरुआत कैसे हुई?
13 जून 2025 को इज़राइल ने "ऑपरेशन राइजिंग लायन" के तहत ईरान के नतांज़ और इस्फहान जैसे प्रमुख परमाणु और सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए। इसके जवाब में ईरान ने सैकड़ों मिसाइलें और ड्रोन इज़राइल पर दागे।
इज़राइल और ईरान के बीच दुश्मनी का इतिहास
- 1979 से पहले: ईरान और इज़राइल के बीच अच्छे संबंध थे।
- 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद: ईरान ने इज़राइल को "शैतान" घोषित किया और फिलिस्तीन के समर्थन में खड़ा हो गया।
- छाया युद्ध (Shadow War): दोनों देश वर्षों से एक-दूसरे के खिलाफ साइबर हमले, वैज्ञानिकों की हत्या और प्रॉक्सी मिलिशिया के ज़रिए लड़ते रहे हैं।
युद्ध के पीछे मुख्य कारण
- परमाणु खतरा: इज़राइल का मानना है कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है, जो उसके अस्तित्व के लिए खतरा है।
- IAEA की चेतावनी: अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने ईरान को गैर-सहयोगी घोषित किया, जिससे तनाव और बढ़ गया।
- प्रॉक्सी युद्ध: ईरान हमास, हिज़्बुल्लाह और हूथी जैसे संगठनों को समर्थन देता है, जो इज़राइल के खिलाफ सक्रिय हैं।
अगर युद्ध नहीं रुका तो क्या होगा?
- तेल की कीमतों में उछाल: स्ट्रेट ऑफ होरमुज़ से 20% वैश्विक तेल गुजरता है। युद्ध से इसकी आपूर्ति बाधित हो सकती है।
- परमाणु खतरा: अगर ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला होता है, तो रेडिएशन फैलने का खतरा है।
- भारत पर असर: भारत की ऊर्जा सुरक्षा और खाड़ी देशों में रह रहे 80 लाख भारतीयों की सुरक्षा पर खतरा मंडरा सकता है।
- वैश्विक मंदी: व्यापार मार्गों में रुकावट और निवेशकों की अनिश्चितता से वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
निष्कर्ष
इज़राइल-ईरान युद्ध केवल एक क्षेत्रीय संघर्ष नहीं है, बल्कि यह वैश्विक स्थिरता के लिए एक गंभीर चुनौती है। इस युद्ध को रोकने के लिए कूटनीतिक प्रयास, संयम और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की सख्त ज़रूरत है।
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